आज हमारी सबसे बड़ी समस्या यह हो गई है कि हम अपने अंतर्मन की आवाज़ को अनसुना कर देते हैं। सच यह है कि हमारे जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव भी उतने ही स्वाभाविक हैं जितना कि संसार में मौसम का बदलना, पेड़-पौधों का मुरझाना और दोबारा उन पर नयी कोपलें फूटना स्वाभाविक होता है। जो व्यक्ति इस प्रक्रिया को सहजता से स्वीकारता है। वह सुख-दुख दोनों ही स्थितियों में संतुलित और समभव रहता है, किन्तु कुछ लोग ऐसी मुश्किलों से बहुत जल्दी घबरा जाते हैं उनका आत्मबल कमजोर पडऩे लगता है। विधाता ने हम सभी को विपरीत परिस्थितियों से जूझने की शक्ति समान रूप से दी है लेकिन कुछ लोग अपने अंतर्मन की इस ताकत को पहचान नहीं पाते और ऐसे ही लोग राह में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं से बहुत जल्दी घबरा जाते हैं। अपने ‘अंतर्मन की ताकत’ को पहचानने वाले लोग हर हाल में शांत और संयमित रहते हैं। यह सच है कि मानव का मन बेहद चंचल माना गया है। इसकी गति बिजली से भी तेज होती है। तभी तो श्रीभगवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—‘इंद्रियां बलवान हैं, इंद्रियों से बलवान मन है और मन से भी ज्य़ादा शक्तिशाली बुद्धि।’
सबसे बड़ी बात यह है कि हम जब कभी समस्याओं के जाल में घिर जाते हैं तब बाहर से मदद लेने की कोशिश तो करते हैं लेकिन उसी समय अगर थोड़ा-सा ध्यान अपने अंतर्मन की आवाज़ को सुनने पर भी लगा दें, तो समस्या का हल मिल सकता है।सत्यता और लक्ष्य एक बार एक व्यक्ति कुछ पैसे निकलवाने के लिए बैंक में गया। जैसे ही कैशियर ने उसे पेमेंट दी, उस कस्टमर ने चुपचाप उसे अपने बैग में रख लिया और बैंक से चला गया। उसने एक लाख चालीस हज़ार रुपए निकलवाए थे। उसे पता था कि कैशियर ने ग़लती से उसे एक लाख चालीस हज़ार रुपए देने के बजाय एक लाख साठ हज़ार रुपए दे दिए हैं, लेकिन उसने यह आभास कराते हुए कहा कि उसने तो पैसे गिने ही नहीं और उसे कैशियर की ईमानदारी पर पूरा भरोसा है, चालाकी से चुपचाप पैसे रख लिए। इसमें उसका कोई दोष था या नहीं, यह तो पता नहीं, लेकिन पैसे बैग में रखते ही कैशियर द्वारा दिए गए बीस हजार अतिरिक्त रुपयों को लेकर उसके मन में बड़ी उधेड़-बुन शुरू हो गई। एक बार उसके मन में आया कि फालतू पैसे वापस बैंक को लौटा दे, लेकिन दूसरे ही पल उसने सोचा कि जब मैं ग़लती से किसी को अधिक पेमेंट दे देता हूं तो मुझे कोई  लौटाने नही आता है

बार-बार उसके अंतर्मन से आवाज़ आई कि पैसे लौटा दे, लेकिन हर बार उसका दिमाग उसे कोई न कोई बहाना या कोई न कोई वजह दे देता था लेकिन इंसान के अन्दर सिर्फ दिमाग ही तो नहीं होता… ‘दिल और अंतरात्मा’ भी तो होती है? रह-रह कर उसके अंदर से आवाज़ आ रही थी कि तुम किसी की ग़लती से फ़ायदा उठाने से नहीं चूकते और ऊपर से ईमानदार होने का ढोंग भी करते हो? उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। अचानक ही जाने उसका मन बदला और वह बैग में से बीस हज़ार रुपए निकालकर बैंक की ओर चल दिया। अब उसकी बेचैनी और तनाव कुछ कम होने लगा था। वह हल्का और स्वस्थ अनुभव कर रहा था। वह कोई बीमार थोड़े ही था, लेकिन उसे लग रहा था जैसे उसे किसी बीमारी से मुक्ति मिल गई हो। उसके चेहरे पर किसी जंग को जीतने जैसी प्रसन्नता व्याप्त थी। बैंक पहुंच कर उसने कैशियर द्वारा गलती से ज्यादा दिए बीस हज़ार रुपए लौटाए तो कैशियर ने चैन की सांस ली। खुश होकर कैशियर ने कस्टमर को अपनी जेब से हज़ार रुपए निकाल कर देते हुए कहा, ‘भाई साहब! आपका बहुत-बहुत आभार! आज मेरी तरफ से अपने बच्चों के लिए मिठाई ले जाना। प्लीज़, मना मत करना।’
कैशियर की बात सुनकर वह कस्टमर बोला- ‘भाई साहब, आभारी तो मैं हूं आपका और आज मिठाई भी मैं ही आप सबको खिलाऊंगा।’ आश्चर्य में डूबे कैशियर ने पूछा ‘भाई! आप किस ख़ुशी में मिठाई खिला रहे हो?’ इस पर उस कस्टमर ने जवाब दिया, ‘आभार इस बात का है कि आपकी गलती से ज्यादा मिले बीस हज़ार रुपयों के इस चक्कर ने मुझे आज ‘आत्म-मूल्यांकन’ का अवसर प्रदान किया है। यदि आपसे ये ग़लती न हुई होती तो न तो मैं मन के द्वंद्व में फंसता और न ही उससे निकलकर अपनी ‘लोभवृत्ति’ पर क़ाबू पाता। यह बहुत मुश्किल काम था। घंटों के अंतर्द्वंद्व के बाद ही में जीत पाया हू। इस दुर्लभ अवसर के लिए आपका आभार।

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